नौबतपुर में महाकिसान चौपाल 24 फरवरी को, उपेंद्र कुशवाहा किसानों से करेंगे संवाद
ANA/S.K.Verma
पटना। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राज्यव्यापी किसान चौपाल के अंतिम सप्ताह में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी किसानों से संवाद करेंगे। कुशवाहा पटना के किसानों के महाचौपाल में शामिल होंगे और केंद्र सरकार के काले कानून की जानकारी किसानों को देंगे। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता फजल इमाम मल्लिक ने पार्टी कार्यालय में पत्रकारों को यह जानकारी दी। इस मौके पर पार्टी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष संतोष कुशवाहा, प्रदेश महासचिव व प्रवक्ता भोला शर्मा, प्रदेश महासचिव मोहन यादव, अरविंद वर्मा, राजदेव सिंह व वीरेंद्र प्रसाद दांगी, किसान प्रकोष्ठ के प्रधान महासचिव रामशरण कुशवाहा, संगठन सचिव विनोद कुमार पप्पू, सचिव राजेश सिंह, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सचिव कलीम उद्दीन इदरीसी, छात्र नेता रवि प्रताप कश्यप और पार्टी नेता अशोक राम भी मौजूद थे। सोलहवें दिन बांका, कटिहार, मोतिहारी, अरवल, सीवान सहित दूसरे जिलों में किसान चौपाल लगाई गई।
मल्लिक ने बताया कि 24 फरवरी को नौबतपुर के अजवां में आयोजित किसान चौपाल में कुशवाहा किसानों के बीच अपनी बात रखेंगे। कुशवाहा का मानना है कि केंद्र सरकार अब इन कानूनों के जरिए किसानों को अपने खेतों में ही मजदूर बनाने पर तुली है। किसान इस बात को बेहतर तरीके से समझ रहे हैं। हैरत की बात तो यह है कि सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की परिभाषा ही बदल डाली है। आम लोगों के लिए चावल, गेंहू या तिलहन से ज्यादा जरूरी क्या हो सकता है लेकिन सरकार ने इसे आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा कर जमाखोरी का रास्ता खोल दिया है। जाहिर है कि इससे फायदा कारपोरेट घरानों को होगा। किसान इस बात को समझ गया है। केंद्र सरकार इसके फायदे तो नहीं बता पा रही है लेकिन किसान इसके नुकसान बता रहा है। दरअसल यह लड़ाई पूंजीपतियों बनाम किसान की है और केंद्र सरकार किसानों के नहीं पूंजीपतियों के साथ खड़ी है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। किसान सरकार की मंशा और नीयत को अच्छी तरह समझ गया है इसलिए उसने प्रतिरोध का लोकतांत्रिक रास्ता चुना है। पार्टी नेताओं ने बताया कि किसान चौपाल के सोलहवें दिन राज्य के कई जिलों में चौपाल लगा कर किसानों को कृषि बिल के सच को उजागर किया गया। चौपाल 28 फरवरी तक लगाई जाएगी. पार्टी नेताओं ने कहा कि सरकार ने ग्यारह दौर की बात किसान संगठनों के साथ की लेकिन वह यह बताने में नाकाम रही कि इसके क्या फायदे हैं और कानून रह गया तो किसानों का क्या भला होगा। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है और किसानों की चिंता को समझने की भी। किसान क्यों उद्वेलित है, क्यों चिंतित है यह सरकार नहीं समझेगी तो कौन समझेगा। सरकार को देश की अवाम ने चुना है तो उसे आम लोगों की पीड़ा को भी समझना होगा और किसानों की भी। लेकिन हैरत इस बात पर है कि केंद्र की सरकार जिद पर अड़ी है और किसानों की परेशानी और चिंता को समझने की बात तो दूर उसे सुनने की कोशिश भी नहीं कर रही है। यह खतरनाक है, लोकतंत्र के लिए भी और देश के लिए भी। मल्लिक ने कहा कि किसान इसलिए भी विचलित है क्योंकि किसानों को डर सता रहा है कि नए किसान कानून की वजह से न्यूनतम समर्थन मूल्य के खत्म हो जाएगा। अब तक किसान अपनी फसल को अपने आस-पास की मंडियों में सरकार की ओर से तय की गई एमएसपी पर बेचते थे। लेकिन इस नए किसान कानून के कारण सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति से बाहर कृषि के कारोबार को मंजूरी दे दी है। यह पूरी तरह लागू हा गया तो किसानों को उन्हें अब उनकी फसलों का उचित मुल्य नहीं मिल पाएगा। रालोसपा ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में किसान कानून का विरोध सबसे ज्यादा इसलिए हो रहा है, क्योंकि यहां के किसान इन राज्यों में सरकार को मंडियों से काफी ज्यादा मात्रा में राजस्व की प्राप्ति होती है। लेकिन नए किसानों कानून के कारण अब कारोबारी सीधे किसानों से अनाज खरीद पाएंगे, जिसके कारण मंडियों में दिए जाने वाले मंडि टैक्स से बच जाएंगे. इसका सीधा असर राज्य के राजस्व पर पड़ेगा। इससे समझा जा सकता है कि सरकार किसानों के साथ नहीं पूंजीपति घरानों को फायदा पहुंचाने में लगी है।