गुरूकृपा के बिना भवबन्धन को काट पाना असंभव – त्रिकालदर्शी शिवनाथ दास

गुरूकृपा के बिना भवबन्धन को काट पाना असंभव – त्रिकालदर्शी शिवनाथ दास

ANA/Arvind Verma

खगड़िया। देवराहा त्रिकालदर्शीशिवनाथदासजी महाराज का श्रद्धालुओं ने विष्णुपुर आहोक में भव्य स्वागत किया।इसके बाद श्रद्धालुओं ने संतश्री की पूजा अर्चना की।पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालु भक्तों को सम्बोधित करते हुए संतश्री ने कहा कि कठोपनिषद में कहा गया है: नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो,न मेंधया न बहुना श्रुतेन।यमेवैष वृणुते तेन लभयस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तैनूं स्वाम।।अर्थात शास्त्रपाठ,मेधाशक्ति या बहुत-से प्रवचन सुनने से इस आत्मा की उपलब्धि नहीं हो सकती।जिन पर यह आत्मा कृपा करती है,वे ही इसे प्राप्त करते हैं और उनके समक्ष यह आत्मा अपना स्वरूप व्यक्त कर देती है।अब यह आत्मा किस पर कृपा करती है।यह आत्मा उसी पर कृपा करती है जो इस आत्मा को जानने के लिए व्याकुल है।यह व्याकुलता सद्गुरु की कृपा के बिना नहीं आ सकती।शास्त्र तो कहते हैं कि जबतक जीव के कर्म और भोग समाप्त नहीं हो जाते और जीव का अहम-भाव दूर नहीं हो जाता तबतक परमात्मा या स्वयं के वास्तविक स्वरूप की पहचान करा देने वाली व्याकुलता नहीं आती।किंतु यदि गुरु की क्षणिक कृपादृष्टि भी शिष्य पर पड़ जाए तो उसके कर्म और भोग क्षणमात्र में समाप्त हो जाते हैं।संतश्री ने आगे कहा कि शिष्य वही है जो गुरु के वाक्य या आदेश का अनुसरण करें न कि गुरु का अनुकरण करें।गुरु की कृपा-प्राप्ति हेतु शिष्य को अपने इष्ट या गुरु के नाम-रूप पर मिटना पड़ता है।जो शिष्य ऐसा कर देता है उस पर तत्क्षण ही गुरु की कृपा हो जाती है और वह अपनी आत्मा को जान लेता है।लेकिन गुरु के वाक्य या आदेश को न मानने वाला शिष्य चाहे वह कितना ही तपस्वी व बुद्धिमान ही क्यों न हो वह अपने मूल स्वरूप को कभी नहीं पहचान पाता है।तुलसी बाबा ने भी कहा है:गुर बिनु भव निध तरइ न कोई। जौं बिरंचि संकर सम होई॥अर्थात शिष्य ब्रह्मा या शंकर के समान ही क्यों न हो गुरुकृपा के बिना वह कभी भी भवनिधि को पार नहीं कर सकता।एक श्रद्धालु की जिज्ञासा के समनार्थ संतश्री ने कहा कि प्रभु का नाम रटते रटते कुछ दिन बीत जाए तो गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास बढ़ जाता है और उसकी कृपा चल पड़ती है जैसे कुछ दिन बीतने पर साधारण औषधि से भी रोग दूर हो जाता।अतः साधक शिष्य को निराश होने की जरूरत नहीं बस गुरु वाक्य का पालन और आचरण करे फिर देखे क्या होता है।वहीं इसके बाद भजन संध्या भी किया गया।वहीं इस दौरान चन्द्रकांत सिंह, मोहनजी शिक्षक,ललित सिंह, संजीव कुमार, डबलूजी,धुर्वजी, मनोज कुमार मनोहर, मनोज चौधरी, रामविलास सिंह, सहित सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।